पंचायत सीज़न 4 रिव्यू: फिर लौट आया फुलेरा का जादू, दिल को छू गई गांव की सादगी और राजनीति की उलझनें
Introduction :
अगर
आप इस सीरीज़ के
पिछले सीज़न के फैन रहे
हैं, तो पंचायत सीज़न 4 आपको बिलकुल निराश
नहीं करेगा।
📌 कहानी का सार:
पंचायत
सीज़न 4 की कहानी वहीं
से शुरू होती है,
जहां सीज़न 3 खत्म हुआ था।
फुलेरा गांव की जिंदगी,
पंचायत ऑफिस और उसके
सदस्यों की राजनीतिक खींचतान
के बीच अभिषेक त्रिपाठी
का ट्रांसफर एक बड़ा मुद्दा
बन चुका है। लोग
अब उसके बिना पंचायत
की कल्पना नहीं कर पा
रहे हैं।
इस बार कहानी में
स्थानीय राजनीति की गहराई और
गाम्भीर्य को नए आयाम
दिए गए हैं। प्रधान
जी (नीना गुप्ता) और
उनके पति (रघुवीर यादव)
अपने चिर-परिचित अंदाज़
में गांव की राजनीति
को संभालते दिखते हैं। वहीं, विधायक
और अफसरों की मिलीभगत से
विकास कार्यों में रुकावट, चुनावी
चालबाज़ी और जनता का
असंतोष भी कहानी को
मजबूती देता है।
🌟 मुख्य आकर्षण:
1. जितेंद्र
कुमार की सहज अभिनय कला:
अभिषेक
त्रिपाठी के किरदार को
जितेंद्र ने जिस सहजता
और गहराई से निभाया है,
वह काबिल-ए-तारीफ है।
उनका हर भाव, चाहे
वह गुस्सा हो या निराशा,
दिल से जुड़ता है।
2. प्राकृतिक
संवाद और ग्रामीण परिवेश:
इस बार भी लेखन
और संवादों में वो देसी
खुशबू है जो दर्शकों
को बांधे रखती है। "चाय
पियोगे?" जैसे छोटे डायलॉग
भी दिल को छू
जाते हैं। कैमरा वर्क
और बैकग्राउंड स्कोर गांव की फील
को और प्रामाणिक बनाते
हैं।
3. राजनीति
और समाज का सटीक मिश्रण:
सीज़न
4 में विकास कार्यों में रुकावट, पंचों
की आपसी खींचतान और
जनता की प्रतिक्रियाएं सबकुछ
बहुत ही व्यावहारिक रूप
से दिखाया गया है। यह
ना तो ज़रूरत से
ज़्यादा ड्रामा करता है और
ना ही किसी मुद्दे
को हल्के में लेता है।
4. सहायक
किरदारों का योगदान:
विकास
(चंदन रॉय), प्रह्लाद (फैसल मलिक) और
मनोज (सुबेंदु चक्रवर्ती) जैसे सहायक किरदारों
ने फिर से जान
डाल दी है। इनकी
केमिस्ट्री, संवाद और टाईमिंग कहानी
को और मजेदार बनाते
हैं।
😢 इमोशन्स और संवेदनशीलता:
पंचायत
सीज़न 4 सिर्फ राजनीति या हंसी मजाक
तक सीमित नहीं है, बल्कि
इसमें कुछ बेहद संवेदनशील
और भावनात्मक दृश्य भी हैं, जो
आंखें नम कर देते
हैं। प्रह्लाद जी का बेटे
की याद में टूटा
मन और पंचायत की
ओर से मिलने वाली
सहानुभूति, दर्शकों के दिल को
छू जाती है।
📺 निर्देशन और लेखन:
दीपक
कुमार मिश्रा के निर्देशन में
बना यह सीज़न फिर
से यह साबित करता
है कि कम संसाधनों
में भी बेहतरीन कंटेंट
बनाया जा सकता है।
चिर-परिचित चेहरे, असली लोकेशन, और
सच्चाई से भरे डायलॉग
इस सीरीज़ को खास बनाते
हैं।
लेखक
चंदन कुमार ने छोटे-छोटे
मुद्दों को बहुत सुंदरता
से बुना है – कहीं
पानी की टंकी का
मुद्दा है, तो कहीं
स्कूल के शिक्षक की
गैरहाजिरी। यही सादगी और
यथार्थता पंचायत की सबसे बड़ी
ताकत है।
👍 क्या अच्छा है?
- हर एपिसोड दिल को छूता है
- अभिनय बेहद नैचुरल और प्रभावशाली
- लोकल मुद्दों को गहराई से दिखाया गया है
- संवादों में देसीपन और ह्यूमर की भरमार
👎 क्या हो सकता था बेहतर?
- शुरुआत थोड़ी धीमी है
- कुछ एपिसोड में खिंचाव महसूस होता है
- हाई ड्रामा की अपेक्षा करने वाले दर्शकों को यह धीमा लग सकता है
✅ अंतिम निष्कर्ष:
पंचायत
सीज़न 4 एक ऐसी वेब
सीरीज़ है जो आज
के डिजिटल ज़माने में भी ग्रामीण
भारत की मिट्टी की
खुशबू, जीवन की सरलता
और राजनीति की पेचीदगियों को
बेहद सादगी से दर्शाती है।
जितेंद्र कुमार और टीम ने
फिर साबित किया है कि
बड़े सेट और ग्लैमर
के बिना भी दिलों
पर राज किया जा
सकता है।
अगर
आप एक ऐसी सीरीज़
देखना चाहते हैं जो हंसाए,
सोचने पर मजबूर करे
और दिल को छू
जाए — तो पंचायत सीज़न 4 को बिल्कुल मिस
मत कीजिए।